माननीय उच्चतम न्यायालय ने माना कि "गोंड" हिंदू नहीं है.

          मै Orkut या Facebook में गोंड समुदाय के युवाओं काProfile देखकर बहुत खुश होता हूँजब उसमे गोंडी झलकता हो मैOrkut और Facebook के गोंड समुदाय के सभी दोस्तों का Profileपढ़ा समुदाय के कई लोगों ने अपना Religion-Hindu लिखा हैइससे ऐसा लग रहा है कि पूर्वजों से गोंडवाना या गोंड समुदाय के लोगोंका कोईतुरों के सम्बन्ध में अगली पीढ़ी को जानकारी नहीं मिल पायाहै या वे लोग जानबूझकर अनभिज्ञता प्रदर्शित कर रहे हैं मै चाहता हूँकि सभी गोंड समुदाय के लोग अपने Profile या दस्तावेजों मेंReligion-Hindu के स्थान पर "गोंडी" Gondi लिखें या कुछ लिखनेकि आवस्यकता नहीं है. क्योंकि Facebook या Orkut file केReligion कालम में हिन्दू, मुस्लिम, जैनबौद्धसिक्ख आदि की तरह "Gondi" अंकित नहीं हैकिन्तु निरास होने कीजरुरत भी नहीं है हम गोंड हैं। इसलिए हमारा धर्म "Gondi" है मै ऐसा मानता हूँ और आज इसकी आवश्यकता भी है किगोंड समुदाय के लोगों द्वारा इसका कट्टरता से पालन किया जाना चाहिए यदि आप अपने आप को हिन्दू कहते हैं तोइसका मतलब भी मालूम होनी चाहिए किस आधार पर हमारे पढ़े-लिखे लोग स्वयं को हिन्दू मानते हैं ? कदापि मुझे यहकहने में झिझक नहीं है कि हमारे पूर्वज हमें गोंडवाना और गोंड के सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी नहीं दे पाए  हमने स्वयंगोंडी साहित्य कि पुस्तकें पढ़कर इस दुनिया के सबसे प्राचीनतम जन समुदाय गोंड समुदाय और गोंडवाना के सम्बन्ध मेंजानकारी हासिल की है इसलिए सभी गोंड समुदाय तथा समस्त जनजातीय समुदाय से विनती है कि सभी लोग गोंडीआदिवासी साहित्यों का अध्ययन करें और पुरातन गोंडवाना के गौरवशाली इतिहास को जानकर गौरवान्वित हों 

          गोंड या आदिवासी समुदाय भारत ही नहीं पूरी दुनिया में विलुप्त हो रही है भारत में मिजोरमआसामनागालैंड,मध्यप्रदेशछत्तीसगढ़उड़ीसाझारखण्डउत्तरप्रदेशआंध्रप्रदेश आदि राज्यों में आज भी बहुतायत हैंकिन्तु अब धीरे-धीरे विभिन्न धर्मों में विलीन होते जा रहे हैं इसका भी कारण हम ही हैंक्योंकि हम गोंड और गोंडवाना की गौरवशाली इतिहास, पृष्ठभूमि को नहीं जानते और अपने आप को औरों से तुच्छ महसूस करते हैं हमारे समुदाय का सबसे बड़ादुर्भाग्य है कि वह अशिक्षा और जानकारियों के अभाव में गोंडी सभ्यता की पहचान नहीं कर पा रहा है। इसलिए गोंडआदिवासियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना हमारा प्रथम कर्तव्य एवं दायित्व भी है

          इस सृष्टि पर सबसे पहले आदिमानव ने अपनी अधिसत्ता स्थापित की उसी आदिमानव की संतान हम गोंडआदिवासी हैं हमारे पूर्वजों ने सबसे पहले प्रकृति को समझाउसके संचलन के गुणधर्मो को जाना और उसे ही अपने जीवनके संस्कार के रूप में समाहित कर लिया यही उसका धर्म हो गया इसलिए आदिकाल से अब तक गोंड आदिवासियों काकोई लिखित धर्म नहीं बन सका प्रकृति के विधान का कोई लिखित स्वरुप इस धरती का तुच्छ मानव कर ही नहीं सकताप्रकृति की उत्पत्ति और विनाश का कोई लेखा कोई कागज पर रखा ही नहीं जा सकता प्रकृति से उत्पन्न वस्तु या भौतिकशरीर का अंत निश्चित है। इसलिए गोंड आदिवासी प्रकृति के शाश्वत विधान को ही अपने जीवन का संस्कारिक गुणधर्ममान लिया यही हमारा सर्वोच्च प्राकृतिक धर्म ही "गोंडीधर्म है प्रकृति की तरह अडिगसच्चाप्रकृति प्रेमीप्रकृति कोमानने वालेप्रकृति की पूजा करने वालेमाता-पिता की पूजा करने वाले बूढ़ादेव के रूप में अपने पूर्वजों की पूजा साजा झाड़के नीचे बैठकर करने वाले कदापि हिन्दू नहीं हो सकते। 

          हिन्दू धर्म आदिवासियों की विनाश की कृति है। आदिवासियों का पूज्य "बड़ादेव" है। बड़ादेव अर्थात वहसर्वव्यापी सत्व तत्व जो सृष्टि का निर्माण करता है और विनाश भी। किसी भी नवीन संरचना निर्माण के लिए वैज्ञानिकऔर सर्वव्यापी आधार है कि किन्ही  तत्वों को मिलाकर ही तीसरी संरचना का निर्माण किया जा सकता है। वे निर्माणकारी तत्व हैं (+) धन तत्व और (-) ऋण तत्व। इन्हें धनात्मक और ऋणात्मक शक्ति भी कहते हैं। इन्हें गोंडी में सल्लें-गांगरे शक्ति कहते हैं. इन दोनों धनात्मक और ऋणात्मक (सल्लें-गांगरे) शक्तियों के संयोग के बिना किसी तीसरी संरचना कानिर्माण किया ही नहीं जा सकता। यह गोंडवाना का प्रथम एवं अंतिम वैज्ञानिक प्रमाण है। गोंड आदिवासीसमाज द्वारा इस (+) धन शक्ति को "पितृशक्ति" अर्थात पितातुल्य तथा (-) ऋण शक्ति को "मातृशक्ति" अर्थातमातातुल्य माना जाता है। इसलिय सृष्टि के उत्पत्तिकारक सर्वोच्च शक्ति अर्थात संरचना की निर्माण करने वालेपैदाकरने वालेबनानेवाले माता-पिता के रूप में इनकी पूजा की जाती है। वास्तव में कोई जीव, तत्व, ठोसद्रव्य किसी भीभौतिक-अभौतिक चीजों की संरचनाओं का निर्माण उनके उत्पत्तिकारक माता-पिता के रूप में इन्ही प्राकृतिक शक्तियों केसंयोग से ही होता है। चुम्बकत्व से लेकर परमाणु बम की शक्ति भी यही शक्तियां हैं। इसलिए इन्हें उत्पत्ति एवं विनाश कीशक्ति अर्थात सबसे बड़ा शक्ति "बड़ादेवके रूप में इन शक्तियों की पूजा गोंड आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता हैइसलिय "गोंडीधर्म के लिए प्रकृति/सृष्टि से बड़ा कोई ईस्वर का साक्षात् प्रमाण हो ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में उन्हेंअन्य धर्मों की तरह "धर्मऔर "धर्मग्रंथोंकी आवश्यकता ही नहीं हैकिन्तु यह सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है कि समस्तआदिवासी समुदायों की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए धर्म के रूप में "गोंडी धर्म, आदिम धर्म, आदिवासी धर्म,प्राकृत धर्म" या समाज के बुद्धिजीवियों का कोई अन्य प्रस्ताव हो सकता हैजिसका पंजीयन हिन्दू, मुस्लिम, जैनबौद्ध, सिक्ख धर्म आदि की तरह कराया जा सकता है। इसके लिए आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों को तन-मन-धन से प्रयासकरना होगा.

          दूसरी ओर हिदू धर्म आदिवासियों का आशियाना (जल, जंगल, जमीन) उजाड़कर काल्पनिक आस्था के भगवानों के मंदिर बनवाने और उसमे मूर्ती बैठाकर पूजा करने में विश्वास रखता है. उसे अपने माता-पिता और मानव से ज्यादा मूर्ती पर विश्वास होता है, इन्शान पर नहीं. हिन्दुवादी लोग अपने माता-पिता और पूर्वजों को उनके देहावसान के बाद उन्हें जलाकर राख कर देता है तथा उसका अस्तित्व मिटा देता है, किन्तु आदिवासी अपने पूर्वजों को इस धरती पर ही दफन करता है और उनकी आत्मा को अपने कुल देवता में शामिल करता है तथा यह मानता है कि उनके पूर्वज उनके साथ घर में निवास करते हैं और कठिन परिस्थितियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं. हिन्दुवादी व्यवस्था में वर्ष में एक बार पितृ पक्ष मनाया जाता है तथा उन्हें बुलाकर भोग दिया जाता है. गोंडी व्यवस्था में प्रतिदिन के भोजन का प्रथम भोग अपने पूर्वजों को चढ़ाया जाता है. उसके पश्चात ही परिवार भोजन ग्रहण करता है. हिंदू मंदिरों में भगवानों की पूजा-पाठ पर विश्वास करता है तथा जन्म देने वाले माता-पिता को वृद्ध होने पर सेवा करने के बजाय वृद्धाश्रम भेज देता है. अर्थात हिंदुओं के लिए माता-पिता भगवन नहीं हो सकते ? यह कार्य विकसित हिंदुओं के लिए आम प्रचलन बन चुकी है. आदिवासी कभी भीख नहीं मांगता. दूसरे धर्मों में भगवान के नाम से भीख मांगने का धंधा बन गया है, एक व्यवसाय बन गया है. हमारा आदमी मेहनत और कर्म पर विश्वास करता है. झूठ नहीं बोल सकता इसलिए व्यवसाय का गुर नहीं सीख सकता. इस कारण सफल व्यवसायी भी नहीं बन सकता और न ही रूपये कमा सकता किन्तु धर्म के नाम पर अपना और अपने परिवार का पेट नही भरता. अपना ईमान भगवान के घर और मंदिरों में नहीं छोड़ता. अपना ईमान कभी नहीं बेचता. जीवन भर अपने कमरतोड़ परीश्रम और कर्मों को ही अपना ईमान और जीवन का परिणाम समझता है. वह किश्मत का रोना नहीं रोता.

          इस तरह बहुत सारी बातें हैं, जो गोंड और हिंदुओं के धार्मिक जीवन व्यवस्थाओं से मेल नहीं खाता. आदिवासियों का अतीत सृष्टि की उत्पत्ति के पश्चात प्रथम मानव के रूप में पुराविद और इतिहासकारों ने दर्ज किया है. उसके करोडों वर्ष बीत जाने के बाद भी अपने मूल संस्कारों को बचाकर रखा है तो वह केवल आदिवासी ही है. इसी संरक्षित सांस्कारिकता के कारण भारत आज दुनिया का सांस्कारिक देश कहलाता है. इसी सांस्कारिकता के कारण भारतीय संविधान में आदिवासियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी है और इसका लाभ समाज, आप और हम सभी आदिवासी समाज उठा रहा है. यदि हम अपने समाज का खाकर दूसरों का नक़ल करेंगे तो हमसे बड़ा समाज को धोखा देने वाला धोखेबाज, गद्दार कोई होगा नहीं. इसलिए हमें अपने समाज पर गर्व करना चाहिए और गर्व से हमें अपना Religion-"Gondi" लिखना चाहिए.

गोंडी धर्म रस्टर्ड नहीं होने के कारण सामने वाला इस बात को उठता है किन्तु संविधान में यह व्यवस्था है कि हम अपना धर्म लिखने और पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं. भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने व्यवस्था दी है कि "Gond" Hindu नहीं है. धार्मिक व्यवस्थाओं के दूरगामी परिणामों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने प्रकरण (सन्दर्भ 1971/MPLI/NOTE-71, त्रिलोकसिंह विरुद्ध गुलबसिया) के महत्वपूर्ण फैसले में निर्णय दिया है कि "It is true that gonds are not hindu. They are governed by Customs Prevalint in the caste.- Justice S.P.Sen, Suprem Court." इसकी प्रति भी उपलब्ध है. अतः माननीय उच्चतम न्यायलय ने गोंड समुदाय कि रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी सांस्कारिक संरचना के आधार पर यह निर्णय दिया है. रीति रिवाज और विशुद्ध प्रकृतिवादी संस्कारिक संरचना के धारक गोंड आदिवासी समुदाय किसी भी रूप में हिंदू नहीं हैं. अतः गोंड आदिवासी समुदाय के लोगों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गयी व्यवस्था का कट्टरता से पालन करना चाहिए कि गोंड आदिवासी समुदाय "हिंदू" नहीं है. लोगों कि मांग को देखते हुए निर्णय/ नोट की प्रति नीचे अपलोड कर दिया गया है.


निर्णय की प्रति




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