गोंडी धर्मावलंबियों और "गोंडी धर्म" कोड पर एक चिंतन

गोंड आदिवासी द्वारा पेड़ और प्रकृति की पूजा 
विश्व में ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण के संरक्षण हेतु विभिन्न योजनाएं बनाए जा रहे हैं तथा उसके क्रियान्वयन हेतु विभिन्न कार्यक्रम और सेमीनार आयोजित किये जा रहे है. सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को राजनेताओं को सेमीनार और कार्यक्रमों के नाम पर पैसा जो खाना है !! इसलिए वे लोग इस तरह के कार्यक्रम कर रहे हैं. कार्यक्रम करने से प्रकृति का कायाकल्प सुधरने वाला नहीं है. अनावश्यक कार्यक्रमों में पर्यावरण बचाने के लिए पैसा बहाना बड़े लोगों का सिर्फ नाटकबाजी है. पर्यावरण और प्रकृति को बचाना है तो प्रकृति से जुड़े संस्कारों को अपनाके या जुड़के तो देखे ! प्रकृति और पर्यावरण जरूर बचेगीकिन्तु इनमे वह साहस नहीं है कि वे गोंडी आदिवासी संस्कृति को धारण कर सकें. जो लोग सदियों से आदिवासी संस्कृतिजीवन की आस्थापरम्परा को अंध विश्वास और गिरा हुआ समझते हैवे लोग इस प्रकृति पूजक परम्परा को कभी स्वीकार नहीं कर सकतेक्योंकि इनके देवता स्वर्ग में जो निवास करते हैं ! ये स्वर्ग के ईश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों को स्वर्ग में ही चला जाना चाहिएकिन्तु ये आडम्बरी लोग ऐसा क्यों नहीं करते और न ही इन्हें आदिवासियों को अंध विश्वासी और नीच और गिरा हुआ कहने और समझने में गुरेज नहीं हैं. ग्रामीण आदिवासियों को न तो ग्लोबल वार्मिंग और न ही पर्यावरण प्रदूषण को समझने से कोई लेना देना नहीं है किन्तु वे जन्मजात इस वैज्ञानिक सत्यता से परिचित है कि प्रकृति की रक्षा ही जीवन की रक्षा है. आडम्बर्पूर्ण आस्था को मानने वाले लोगों में वाकई में प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता है तो वे आदिवासियों के प्रकृति पूजक संस्कृति को धारण करके दिखाएँ ! प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा अपने आप हो जाएगी. किन्तु इन ढोंगी लोगों को मंदिर बनवाने और उसमे ३३ कोटि देवताओं को बिठाकर उनकी पूजा करने में ही फुर्सत नहीं है. क्या ऐसे धर्मावलम्बियों की आस्था और संस्कृति से प्रकृति बचेगी कभी नहीं. जो आदिवासी जाने अनजाने में हिन्दूओं की आस्थापरम्पराधर्म और संस्कृति को धारण करने में लगे हुए हैंउनके लिए यह मेरी खुली चुनौती है कि क्या वे हिंदूवादी ब्राम्हण बन सकेंगे उनकी यह कुटिल चाल है कि वे आदिवासियों को सदियों से हिन्दू बनाने के लिए तुले हुए हैं ताकि उनकी हिन्दुवाद के जनसंख्या के आंकड़े बढे और देश हिन्दुओं का देश कहलाये.

आज विभिन्न राज्यों में धर्म कोड की मांग हो रही है. झारखंड के आदिवासी सरना धर्म की मांग कर रहे है क्योंकि वे सरना धर्म और संस्कृति की कट्टरता से पालन करते हैं और अपना धर्म सेन्सस रिपोर्ट (देश की जनगणना पत्रक) में भी गर्व से सरना धर्म लिखवाते है. उनकी जनसंख्या जैन धर्मावलम्बियों की जनसंख्या से भी अधिक हैफिर भी सरना धर्म को धर्म कोड नहीं दिया गया. मुझे यह लिखने में कतई खेद नहीं है कि देश के पढ़े लिखे गोंडो आदिवासियों की मानसिकतासामाजिकतासांस्कृतिकता का हिन्दुकरण हो गया है और वे लोग अपना धर्म हिन्दू लिखने लगे हैं. यह कटु सत्य है. देश में २०११ की जनगणना में धर्म के कालम में ऐसे कितने गोंड हैं जो "गोंडी" लिखे हैंया कितने आदिवासी हैं जो धर्म के कालम में "आदिवासी" लिखे हैंकोई नहीं बता सकता क्योकि वे हिन्दू ही लिखे है. किन्तु मै बता सकता हूँ कि मैंने अपने धर्म के कालम में "गोंडी" लिखा हैक्योकि मुझे अपनी परम्परासंस्कृति और धर्म पर नाज है और रहेगा. झारखंड के एक आदिवासी सज्जन ने मुझे यह असलियत बताकर चौका दिया कि देश में २०११ की जनगणना के अनुसार सेन्सस रिपोर्ट में "गोंडी धर्म" मानने वालों कि संख्या केवल ५,००,००० (लगभग) दर्ज है. यह देश के गोंडों के लिए अत्यंत चिंताजनक और शर्म की बात है. केवल छत्तीसगढ़ में २००१ की जनगणना के अनुसार कंवर आदिवासी ६,००,०००. उराँव आदिवासी ९.००.००० एवं हल्बा हल्बी आदिवासी ३,००,००० है. अर्थात कुल आदिवासियों की संख्या ६६,००,००० छत्तीसगढ़ में ही निवास करते हैंजिसमे से केवल गोंडों की संख्या ही ४४,००,००० है. अब सभी यह अनुमान लगा सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के कितने गोंडो ने अपने धर्म के कालम में "गोंडी" लिखे होंगे ?२०११ के पूरे देश की जनगणना का आंकड़ा बता रहा है कि गोंडी धर्मावलंबियों की संख्या ५,००,००० है. क्या गोंडों के लिए "गोंडी" धर्म कोड मांग के लिए यह आंकड़ा पर्याप्त है ?

शासन से धर्म कोड मांग के लिए अन्य धर्मावलम्बियों के बराबर पर्याप्त जनसंख्याभाषा बोलने वाले इत्यादि दस्तावेजों की आवश्यकता होती है. जनगणना के आंकड़ेएन.एस.एस.ओ. की रिपोर्ट में उनसे सम्बंधित जानकारी को प्रमुखता से मानी जाती है. ऐसी स्थिति में क्या गोंड "गोंडी धर्म" कोड या समस्त आदिवासी "आदिवासी धर्म" कोड, "प्राकृत धर्म" कोड, "आदि धर्म" कोड प्राप्त कर सकेंगे कदापि नहीं. देश के जितने भी आदिवासी है उन्हें इस विषय पर गहन चिंतन करना पड़ेगा. यदि आप गोंड हैं तो "गोंडी धर्म" लिखना चाहिए. किन्तु इस पर भी आदिवासियों के बीच वर्ण और जाति व्यवस्था से ग्रषित विचार उत्पन्न होंगे कि यह तो गोंड लोगों का धर्म कहलायेगा ! हम तो कंवर हैहम तो उराँव हैहम तो हल्बा हल्बी हैहम कैसे लिख सकते हैं गोंडी धर्म इस विषय पर आने से पहले आदिवासियों को यह जान लेना चाहिए कि गोंडवाना क्या है गोंडवाना एक भू भाग है जिसमे निवास करने वाले लोग गोंड हैं. गोंडवाना साहित्यों में लिखा है उसी आधार पर मेरा संकलन "गोंडवाना के गोंड और उनकी भाषाएँ" इसे समझने में काफी सहायक हो सकती है जो निम्नानुसार है :-

"गोंडवाना ऐसा शब्द है जिससे गोंडियनों के मूल वतन का बोध होता हैगोंडियनों की जन्मभूमिमातृभूमिधर्म भूमि और कर्मभूमि का बोध होता हैउनकी मातृभाषा का बोध होता हैफिर वे कोई भी गोंड होचाहे कोया गोंड होराज गोंड होपरधान गोंड होकंडरी गोंड होमाड़िया गोंड होअरख गोंड होकोलाम गोंड होओझा गोंड हो,परजा गोंड होबैगा गोंड होभील गोंड होमीन गोंड होहल्बी गोंड होधुर गोंड होवतकारी गोंड होकंवर गोंड होअगरिया गोंड होकोल गोंड होउराँव गोंड होसंताल गोंड होकोल गोंड होहो गोंड होसभी गोंडवाना भूखंड के गणराज्यों के गणगण्डगोंड तथा प्रजा है.

गोंडवाना भूभाग के गणराज्यों में मूल रूप से तीन भाषाएँ बोलने वाले गोंडियनों की प्रभुसत्ता प्राचीन काल से ही रही हैभीलभिलालापावरावारलीमीणा यह भिलोरी भाषा बोलने वाले भीलवाड़ा एवं मच्छ गणराज्यों के गण्ड तथा गोंड हैकोयाकंडरीओझामाड़ियाकोलामपरजाबिंझवारबैगानगारचीकोयरवातीगायतापाडातीठोती,अरख आदि गोयंदाणी भाषा बोलने वाले गोंडवाना गणराज्यों के गोंड तथा गण्ड हैंकोलकोरकूकंवरमुंडा,संतालहोउराँवअगरियाआदि मुंडारी अर्थात कोल भाषा बोलने वाले कोलिस्थान गणराज्य के गण्ड तथा गोंड हैंजिस गणराज्य के परिक्षेत्र को वर्तमान में झारखंड कहा जाता हैइस तरह गोंडवाना भूभाग के गणराज्यों से गोंडियनों की मूल मातृभाषाओं का बोध होता हैगोंडियनों के प्राचीन प्रशासनिक इतिहास का बोध होता है.गोंडियनों के सामाजिकधार्मिकसांस्कृतिक मूल्यों का बोध होता हैइसलिए "गोंडवानायह शब्द गोंडियनों की अस्मिता एवं स्वाभिमान बोधक है."

सम्पूर्ण आदिवासी समाज में जो लोग यह मानते हैं कि "गोंड" एक पृथक जाति है तथा गोंडियनों के उपरोक्त इतिहास को देखा जाये तो यह औचित्य प्रतिपादित होता है कि गोंडवाना के सभी निवासी गोंड हैं. इस आधार पर"गोंडी धर्म" कोड की मांग एक विकल्प भी है. जो आदिवासियों की सामाजिकधार्मिकसांस्कृतिक मूल्यों की अस्मिता एवं स्वाभिमान के टूटे हुए कड़ियों को जोड़ने के लिए संबल प्रदान कर सकता है.

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